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आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ कांग्रेस ने खेला था राम के नाम का कार्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को राम मंदिर का भूमि पूजन करने करेंगे। इसी के साथ भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। अयोध्या के नाम पर देश के राजनीतिक पार्टियों ने जमकर रोटियां सेंकी हैं। बीजेपी ने भले ही 1989 में राम मंदिर को अपने एजेंडे में शामिल किया हो। लेकिन कांग्रेस ने तो आजादी के 1 साल बाद ही 1948 में अयोध्या के उपचुनाव में राम के नाम पर वोट ही नहीं मांगा था, बल्कि हार्डकोर हिंदुत्व का कार्ड भी खेला था। देश की स्वतंत्रता आंदोलन के लिए 1885 में कांग्रेस का गठन हुआ. लेकिन साल 1934 में कांग्रेस के अंदर राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव जैसे समाजवादी नेताओं का एक धड़ा भी बन गया था। देश की आजादी के कुछ दिनों बाद नरेंद्र देव ने अपने 7 समर्थक विधायकों के साथ उत्तरप्रदेश विधानसभा से इस्तीफा देकर कांग्रेस से अलग होकर मार्च 1948 में सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। आचार्य नरेंद्र देव ने अयोध्या (फैजाबाद) को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया था।

धीरेंद्र झा की किताब “अयोध्या द डार्क नाइट” में भी इस बात का जिक्र है कि गोविंद बल्लभ पंत फैजाबाद चुनाव प्रचार में जोर देकर कहते थे, कि नरेंद्र देव नास्तिक है, भगवान राम को नहीं मानता है, और हिंदू धर्म को भी नहीं मानता है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघवदास चुनाव प्रचार दौरान लोगों को तुलसी की पत्तियां खिलाकर कसम खिलाते थे, कि नरेंद्र देव को वोट ना दें। इस तरह फैजाबाद के उपचुनाव में जमकर सांप्रदायिक कार्ड खेला गया। 28 जून 1948 के दिन वोटिंग हुई और रिजल्ट आ गया। इस तरह पंत का कम्युनल कार्ड चल गया था. और 1312 वोट से आचार्य नरेंद्र चुनाव हार गए थे। इस उपचुनाव में राम जन्मभूमि मुद्दा अपने पहले राजनीतिक टेस्ट में पास हो चुका था।

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